महात्मा बुद्ध भारत के अपेक्षित समाज के लिए वरदान - इसलिए भारत में बौद्ध धर्म नहीं टिका ।

अच्छे विचार की ओर जाने का मार्गदर्शक के रूप में - महात्मा बुद्ध
अच्छे विचार की ओर जाने का मार्गदर्शक के रूप में - महात्मा बुद्ध।। उस समय की बात है जब भारत में भेदभाव अपने चरम सीमा पर पहुंच चुका था तब महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ। वह भारत को इस समस्या से भारतीय समाज को मुक्ति दिलाई। भारत के लोगों ने बुद्ध के इस जीत को धर्म का रूप दे दिया जो बौद्ध धर्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भारत का वर्णभेद इतना मजबूत स्थिति में था और है की यह धर्म भारत में टिक नहीं सका लेकिन श्रीलंका, तिब्बत, चीन और जापान जैसे देशों में आज तक इसकी लोकप्रियता बरकरार है।  भारत को आर्थिक रूप से पिछड़ने का एक मुख्य कारण जातीय भेदभाव के खिलाफ़ आवाज उठानेवाला बौद्ध धर्म का यहाँ से पलायन होना को माना जा सकता है। महात्मा बुद्ध करीब 6 वर्षों तक भटकते व घोर तपस्या करने के बाद 35 वर्ष की आयु में गौतम को ज्ञान की प्राप्ति हुई जिसके बाद से इनको बुद्ध कहा जाने लगा। ज्ञान मिलने के बाद गौतम बुद्ध सिर्फ बरसात के समय एक जगह रुकते थे, बाकी समयों में रोज 20 से 30 किलोमीटर तक सफ़र करते और लोगों को ज्ञान बाटते तथा वर्णभेद के ख़िलाफ़ आवाज उठाते। इनके इस काम से भारत के नीच जाती के लोगों में विश्वास जागा और हिन्दू धर्म में मौजूद वर्णभेद अवसाद से अपनेआप को अलग कर लिया और उच्च वर्ग के विरुद्ध आवाज उठाने शुरू कर दिया। उस समय के भारत में यह सबसे बड़ी क्रांति कही जा सकती है। बुद्ध ने समाज में चल रहे वर्ण भेदभाव के खिलाफ़ हमेशा डंटे रहते। उन्होंने लोगों को एक दूसरे के साथ प्रेम से रहना सिखाते, उनका ज्यादा समय नीच जाती के लोगों के साथ बीतता था। 

इतना के बावजूद भी आज का भारत में व्यक्ति पढ़ा-लिखा हो या फ़िर अनपढ़ हीं क्यों न हो सबको मालूम है कि निंदा तथा गाली जैसे व्यवहार करना अच्छे मनुष्य का शोभा नहीं देता है। इतना सबकुछ जानने के बावजूद भी निंदा और गाली से हमसब अछूता नहीं है, हमें ऐसे व्यक्तियों से कभी न कभी पाला पड़ हीं जाता है, हम जाने-अन्जाने में किसी के साथ ऐसा व्यवहार कर देते हैं कि उस मानव को निंदा या गाली देने के अलावा कोई रास्ता हीं नहीं बचता है। 

वह मनुष्य जो आपके व्यवहार से दुखिद है, आपके द्वारा दिए गए पीड़ा को सहने में असमर्थ है, उस अवस्था में वह अपनेआप को तसल्ली देने के लिए इसका सहारा ले लेता है। जैसे गम भुलाने के लिए कुछ लोग शराब का सहारा लेते हैं जो बिल्कुल गलत है। पहले तो हमे यह सिखने की जरूरत है कि चाहे जो, हो किसी को निंदा नहीं करनी चाहिए और न हीं किसी को गाली देनी चाहिए और न हीं सुनने पर विचलित होना चाहिए। इसके बगैर भी हम संतुष्टि के साथ रह सकते हैं बस थोड़ा धैर्य रखना होगा और प्रयास करना होगा सब सम्भव है। कुछ लोग बिना शराब के प्रयोग किये हीं अपना सारा गम भुला देते हैं। 

एक बार की बात है महात्मा बुद्ध पेड़ के नीचे बैठे थे उस समय कठोरता के साथ एक व्यक्ति ने उनको गालियाँ देने लगा। वह अज्ञानी व्यक्ति बुद्ध को गालियाँ देता रहा निंदा करता रहा लेकिन बुद्ध चुपचाप सुनते रहे। उस व्यक्ति का गालियाँ देना व निंदा करना बन्द हुआ तो बुद्ध ने पुछा वत्स! यदि कोई दान को स्वीकार नहीं करे तो उस दान का क्या होगा? व्यक्ति ने उतर दिया- वह देनेवाले के पास ही रह जाएगा! तब बुद्ध ने कहा, ‘वत्स मैं तुम्हारी गालियाँ लेना स्वीकार नहीं करता’। वह मानव बहुत शर्मिंदा हुआ और फ़िर बुद्ध के कदमों पर गिरकर माफ़ी मांगी। 


वर्तमान समय में भारत में आलोचनाओं(निगेटिव) का दौर चलन हो गया है। हम सब भारतियों को ऐसा लगने लगा है कि सब कुछ आलोचना से हीं सम्भव है। जहाँ देखें आलोचना हीं हो रहा है। आलोचना घर से निकलकर अब देश पर हावी हो गया है, जबकि हमें यह सिखाया जाता है कि यदि किसी से रिश्ता निभाना चाहते हैं तो उसके सकारात्मक को टटोलना चाहिए ना की नकारत्म को। भारत में आलोचना का इतना प्रचार-प्रसार हो हो गया है कि यह नकारत्मकता का रूप ले लिया है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह जब देश के प्रधानमंत्री थे तो उनको खूब आलोचना किया गया, इनको इतना आलोचना का शिकार होना पड़ा की इनकी सरकार सत्ता से बाहर हो गई। अंधभक्ति आलोचना ने मोदी सरकार को सत्ता में ले आयी। मनमोहनसिंह सरकार  के मनरेगा, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार सब बेकार था। हम सब अपने आप को सुधार करने के बजाय आलोचना की राह को चुन लिया है जो अच्छा विकास नहीं दे सकता। मनमोहनसिंह सरकार को घोटाला की सरकार कहकर हटा दिए को सही मान लेते हैं फ़िर मोदी के काम को भी आलोचना जोरों पर हीं कायम है। दोनों सरकार को सिर्फ निगेटिव फीडबैक मिला है, हौसला बढ़ाने वाली बात न के बराबर हीं देखा जा रहा है। इससे देश को क्या मिलनेवाला है पता नहीं! जबकि हमे किसी का हाथ थामकर देश को चलाना हीं है तब तो देश विकास के राह पर चलेगा। हमे सरकार के निर्णयों को ईमानदारी के साथ लागू करने की जरूरत है न की आलोचना करने की।

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