एक कप चाय, मिट्टी वाली में - चाय को पीने में जो मजा है, वो मजा सात समन्दर पार जाकर भी नहीं वो कैसे !


एक कप चाय से याद आया कि मिट्टी के बर्तन वाली चाय को पीने में जो मजा है, वो मजा सात समन्दर पार जाकर एक प्रेमी को अपने प्रेमिका या एक प्रेमिका को अपने प्रेमी से मिलने में भी नहीं होगा! लेकिन वो मजा इस चाय पीने में आपको मिलेगा। 

आप महिला हों या पुरुष यदि आप अपने जीवन में, प्रेम में प्रवाहित होने के आनंद से वंचित रह गाएं हैं तो हमारी मानिये एक बार इस चाय के प्रेम में बह जाइये, डूब जाइये और इसके गर्माहट में गोते लगा लीजिये! इसके मंद-मंद सुगंध में अपने नाक के दोनों सुराग को झोंक दीजिये। लेकिन एक बात का ख्याल रखियेगा,  इस चाय को पीने में कभी जल्दीबाजी नहीं कीजियेगा। नहीं तो, आपका जीभ आपसे नाराज हो जायेगा। बेमतलब के आप बेचारा स्वभाव से कोमल जीभ को रुखा कर दीजियेगा। यदि आपको विश्वास नहीं होता, तो एक बार मिट्टी वाला चुक्का में परोसी गई चाय को अपने होंठ से लगाकर और चाय को जीभ पर गिराकर तो देखिये! जैसे हीं, यह चाय आपके जीभ को स्पर्श करेगी वैसे हीं आप स्वयं इसके स्वाद से परिचित हो जाएंगें। हमारी मानिये तो आज हीं आप नुक्कड़ वाली एक कप चाय का मज़ा ले लीजिये।

भारत आधुनीकता की ओर कदम बढ़ा चुका था, अपने पुराने मिट्टी के बर्तन से तौबा कर चुका था और अब यह देश एक दम से नया बन चुका था। लोग प्लास्टिक के बने कप में चाय की चुश्की लेने शुरू कर दिए थे। आम जनता तक यहीं कप पहुंच रहा था, जबकि कुछ अच्छे लोग कागज से निर्मित कप में चाय पी रहे थे की प्रथा जोरों पर भी थी। विश्वास नहीं कीजियेगा देश में इसका प्रचलन इतना हो चला था कि  बड़े-बड़े आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग इस कप के निर्माण में लाखो-करोड़ों की पूंजी लगा चुके थे। इस पर देश के कोने-कोने में बहुत बड़ा रोजगार के महल का निर्माण हो चुका था। इस कप के आने से चाय की बिक्री व खपत भी पहले की अपेक्षा बढ़ चुकी थी। 

भारतीय रेल के जेनरल डिब्बा में सफ़र करनेवाले लोगों के पास भी प्लास्टिक के कप में चाय पहुंच हीं जाती थी। इससे लोगों को चाय पीना एकदम सरल हो गया। लोग कहीं भी एक कप चाय पी लेते और चाय बेचनेवाले भी अपनी चाय की दूकान कहीं भी शुरू कर लिया करते। इससे चाय के दाम में भी भारी कमी आ गई जो एक आम भारतीयों के लिए उपयुक्त साबित हुआ। इस प्लास्टिक के कप ने देश में दुष्प्रभाव भी छोड़ना शुरू कर दिया। सड़क के किनारे, चौक चौराहा के पास प्लास्टिक के कप भरे पड़े होते। रेल के पटरियों और जेनरल डिब्बों प्लास्टिक के कप से सने पड़े होते। इतना हीं नहीं देश के कोना-कोना देखते हीं देखते प्लास्टिक कप से भर गया।

प्लास्टिक कप वाली चाय के दौर में हीं डाक्टर मनमोहनसिंह जब भारत के प्रधानमंत्री थे तब बिहार के स्टार नेता लालूप्रसाद यादव रेल मंत्रालय को सम्भाला और प्लास्टिक कप को बंद करके मिट्टी वाले चुक्का की शुरुआत की नींव रखी। प्रसाद ने सर्वप्रथम यह प्रयोग भारत के रेल विभाग के होटल में लागू कर दिए। इसके बाद रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों को मिट्टी के चूक्का में चाय मिलने लगा। उस समय प्रसाद के इस फैसला को लोगों ने मजाक उड़ाया! और लालूप्रसाद के इस निर्णय को देश में खूब खिल्ली उड़ाई गई, लेकिन इस नेता ने सभी के आलोचनात्मक बातों का अनसुना करते हुए अपने फैसले पर अड़े रहे और ‘एक चाय प्लास्टिक के कप’ की प्रथा को बंद कर दिए और इसके जगह देश में ‘एक कप चाय, मिट्टी के चुक्का में’ वाली प्रथा की शुरुआत कर दिए। 

आज मिट्टी के चुक्का वाली चाय लोगों को खूब पसंद आ रहा है। लोग इसके लिए अधिक पैसा खर्च करने को तैयार हैं। अब बिहार के छोटे ग्रामीण शहरों में भी आप ‘मिट्टी के चुक्का में एक कप चाय’ का मज़ा ले सकते हैं। देश में इस क्रांति‘ (मिट्टी के चुक्का में एक कप चाय’ वाली क्रांति) के जनक लालूप्रसाद यादव हीं हैं जो आज भयानक जाल में फंसकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यादव नुक्कड़ वाली एक कप चाय का आनंद नहीं ले रहें होंगें, लेकिन इनके देश के आम जनता ‘चुक्का वाली एक कप चाय’ का लुफ्त अवश्य उठा रहें हैं।

एक कप चाय का धूम भारत में उस समय चरम सीमा को प्राप्त कर लिया जब 2014 के लोक सभा चुनाव में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी रैली में यह कह दिया “मैं एक समय रेलवे स्टेशन पर चाय बेचा करता था और लोगों को एक कप चाय पिलाया करता था”। नरेंद्र मोदी के इस अंदाज से भारत के लोग इतना प्रभावित हुए कि मोदी को चुनाव में जीत दिला दिया और नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बन गए। नरेंद्र मोदी को भारत के प्रधानमंत्री बनते हीं ‘मोदी की चाय’ वाली कहानी ऐसा हाल हुआ जैसे सुनामी आने के बाद दृश्य होता है। 

भारत का प्रधानमंत्री बनने के साथ हीं नरेंद्र मोदी ने भी अपने वेशभूषा को ऐसा बदला जैसे कोई राजकुमार बचपन में बिछड़ गया था और फ़िर जबानी में राजा को उस समय मिला जिस समय राजा को एक उतराधिकारी की जरूरत थी। इतना होने के बाद भी ‘मोदी की चाय’ ने अभी तक ये साफ नहीं किया कि नरेंद्र मोदी जब चाय बेचा करते थे तब वह चाय प्लास्टिक के ग्लास में बेचा करते थे कि मिट्टी के चुक्का में बेचा करते थे। क्योंकि, दोनों कप में चाय तो एक हीं जैसी होती है (दूध वाली चाय) लेकिन मिट्टी के चुक्का में परोसी जानेवाली चाय को पीने में जो मज़ा है वह तो सिर्फ बिहार के मसीहा लालूप्रसाद यादव हीं बता सकते हैं दूसरा भला कौन बता सकता है!

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