गांधीजी का भारत में पहला अनशन।।

गांधीजी का भारत में पहला अनशन।।

गांधीजी का भारत में पहला अनशन।।

अहमदाबाद  मिल-मज़दूरों के औद्योगिक झगड़ों को सुलझाने गांधीजीजी ने जो मांग तैयार की उसको मिल-मालिकों के सामने रखा। उन्होंने 20 फीसदी से अधिक देने से क़तई इन्कार कर दिया और कह दिया कि 22 फरवरी 1918 से मिलों में  ताले  डाल दिये जाएंगे।


गांधीजीजी ने मिल-मज़दूरों की एक सभा बुलाई और एक पेड़ के नीचे उनसे यह प्रतिज्ञा करवाई कि वे तब तक काम पर नहीं लौटेंगे जब तक उनकी मांग स्वीकार नहीं हो जाती।


प्रतिज्ञा में यह बात भी थी कि वे लोग जब तक मिलों में ताले पड़े रहेंगे तब तक किसी हालत में शांति-भंग न करेंगे। अहिंसा गांधीवादी संघर्ष का हमेशा से अविभाज्य अवयव रहा है।


हड़ताली मज़दूरों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही थी। एक शाम जब गांधीजी मज़दूरों के बीच सभा कर रहे थे, एक व्यक्ति ने ताना दिया कि गांधीजी और अनुसूयाबेन तो कार से चलते हैं और उन्हें भोजन की कोई समस्या नहीं है, लेकिन हमारे बच्चे भूखों मर रहे हैं।


बात कड़वी थी, लेकिन सच थी। गांधीजीजी ने उसी समय यह घोषणा की कि जब तक मज़दूरों की मांगे नहीं मानी जातीं, तब तक न तो किसी सवारी में ही चलेंगे और न ही भोजन ही करेंगे।


यह भारत में उनका पहला अनशन था।


यह समाचार तेजी से फैल गया। गांधीजीजी ने इस बात को स्वीकार किया  कि हाँ, मेरे उपवास का असर उन पर पड़े बिना नहीं रह सकता और इस हद तक वह ज़बरदस्ती ही हो सकता है। लेकिन, उपवास का एक अप्रत्यक्ष  प्रभाव मात्र  ही होगा, क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य तो मज़दूरों को अपनी प्रतिज्ञा पर डटे रहने के लिए बल प्रदान करना ही है।


सत्याग्रह के दिनों में मज़दूरों की आर्थिक सहायता के लिए गांधीजीजी  ने सत्याग्रह श्रम साबरमती  की भूमि पर सैकड़ों मज़दूरों को इमारत बनाने के काम पर रख लिया। अनसूया बेन जो मिट्टी, ईट और चूना ढो रही थीं।


इसका बहुत बड़ा नैतिक प्रभाव पड़ा। मज़दूर अपनी प्रतिज्ञा पर अटल हो गए और मिल-मालिकों के भी  दिल दहल गए। देशभर से नेताओं ने अपीलें कीं।


अपील करने वालों  में  श्रीमती बेसेन्ट का नाम उल्लेखनीय है, जिन्होंने मिल-मालिकों को यह तार भेजा था- भारत के नाम पर मान जाओ और गांधीजी के प्राण बचाओ।


अंततः मज़दूरों और मिल मालिकों में समझौता हुआ।

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