उस्ताद मंगू ‘नया कानून’ की खोज में सुबह के सर्द धुँधलेके में, कई तंग और खुले बाजारों का चक्कर लगाना शुरू कर दिया।

उस्ताद मंगू ‘नया कानून’ की खोज में सुबह के सर्द धुँधलेके में, कई तंग और खुले बाजारों का चक्कर लगाना शुरू कर दिया।

नया कानून

सआदत हसन मंटो

एक परिचय: मंटो ने कुल 43 वर्ष के जीवन काल में अनेक विवादास्पद, चर्चित और विशिष्ट कहानियाँ लिखीं। उनके लेखन से उर्दू साहित्य में यथार्थवाद का एक नया दौर शुरू हुआ। उनकी चेतना पर भारत-पाक विभाजन का तीखा असर पड़ा।  उनकी अनेक ऐसी कहानियाँ ‘स्याह हाशिये’ नामक कहानी संग्रह में मिलती हैं। ‘खोल दो’, ‘टोबा टेकसिंह’, ‘हतक’, ‘लाइसेंस’, ‘काली सलवार’, मंटो की प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। सन् 1947 में विभाजन के समय मंटो पाकिस्तान चले गए।

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कहानी नायक उस्ताद मंगू के दिल में ‘नए कानून’ का महत्व और भी बढ़ा दिया और वह उसको ऐसी चीज समझने लगा, जो बहुत चमकती हो।“उस्ताद मंगू के दिल में ‘नए कानून’ का महत्व और भी बढ़ा दिया और वह उसको ऐसी चीज समझने लगा, जो बहुत चमकती हो।”

अब आगे..........

उस्ताद मंगू ‘नया कानून’ की खोज में सुबह के सर्द धुँधलेके में, कई तंग और खुले बाजारों का चक्कर लगाना शुरू कर दिया।

पहली अप्रैल तक उस्ताद मंगू ने नए विधान के पक्ष और विपक्ष में बहुत कुछ सुना। पर उसके बारे में जो खाका वह अपने मन में बना चुका था, उसे वह बदल न सका। वह समझता था कि पहली अप्रैल को नए कानून के आते ही सब मामला साफ हो जाएगा और उसको विश्वास था कि उसके आने पर जो चीजें नजर आएँँगी, उनसे उसकी आँखों को जरूर ठंडक पहुँचेगी।


आखिर मार्च के इकतीस दिन खत्म हो गए और अप्रैल के शुरू होने में रात के चंद खामोश घंटे बाकी रह गए। मौसम आम दिनों की बनिस्बत ठंडा था और हवा में ताजगी थी।


पहली अप्रैल को सुबह-सवेरे उस्ताद मंगू उठा और अस्तबल में जा कर उसने ताँगे में घोड़े को जोता और बाहर निकल गया। उसकी तबियत आज असाधारण रूप से प्रसन्न थी। ......वह, आज नए कानून का देखने वाला था।


उसने सुबह के सर्द धुँधलेके में, कई तंग और खुले बाजारों का चक्कर लगाया, मगर उसे हर चीज पुरानी नजर आई। आसमान की तरह पुरानी। उसकी निगाहें आज खास तौर पर नया रंग देखना चाहती थीं, पर सिवाय उस कहानी के, जो रंग-बिरंगे परों से बनी थी और उसके घोड़े के सिर पर जमी हुई थी, बाकी सब चीजें पुरानी नजर आती थीं। यह नई कलगी उसने नए कानून की खुशी में इकतीस मार्च को चैधरी खुदा बख्श से साढ़े चैदह आने में खरीदी थी।

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