जब नेहरूजी की माँ पर पुलिस ने लाठियाँ बरसा दी और नेहरू जी जेल में कैद थे।

जब नेहरूजी की माँ पर पुलिस ने लाठियाँ बरसा दी और नेहरू जी जेल में कैद थे।

इतिहास के पऩ्ना से नेहरूजी की कहानी, जब उनकी माँ पर पुलिस ने लाठियाँ बरसा दी और नेहरू जी जेल में कैद थे लेकिन वह भयभीत नहीं हुए और जेल से हीं कहा, यदि मैं जेल से बाहर होते तो शायद अहिंसा का पालन नहीं कर पाते।

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8 अप्रैल 1932 देश भर में 1919 की भयावह घटनाओं की स्मृति में मनाए जा रहे कांग्रेस सप्ताह का दूसरा दिन था। इलाहाबाद में विशाल जुलूस निकला तो वयोवृद्ध स्वरूपरानी नेहरूजी सबसे अग्रिम पंक्ति में थीं।

 

जुलूस को पुलिस ने रोका। स्वरूप रानी जी सड़क के बीच में बैठ गईं। पुलिस की लाठियाँ चलीं तो माताजी को भी नहीं बख्शा गया। उनके सिर पर गंभीर चोट आई और वह अचेत होकर गिर पड़ीं। शहर में शोर मच गया कि माताजी नहीं रहीं। हालाँकि वह स्वस्थ हो गईं और पूरे उत्साह से आंदोलन में लगी रहीं लेकिन इस चोट ने उनके स्वास्थ्य पर गहरा असर किया।

 

जवाहरलाल नेहरूजी उस समय बरेली की जेल में थे; इस समाचार ने उन्हें क्रोध से भर दिया। वह लिखते हैं कि अगर उस समय मैं बाहर होता तो पता नहीं अपने अहिंसा के व्रत का पालन कर पाता या नहीं।

 

इस तरह के अनुभवों ने ब्रिटिश शासन से आज़ादी के उनके संकल्प को और मज़बूत किया।

 

बरेली की जेल में वह 1932 के मध्य तक रहे और इसके बाद 14 महीने देहरादून की जेल में। पचीस फुट ऊँची दीवार से घिरी इस जेल में उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा था और उनका वज़न लगातार गिर रहा था।

 

लेकिन उनका उत्साह कम नहीं पड़ा था; अपनी बहन कृष्णा को लिखे एक पत्र में उन्होंने लिखा- जेल में रहने का अनुभव धैर्य सिखाता है।

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