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"Father stumbled in the last years of his life and not only fell himself but also drowned me - Munshi Premchand."

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" Father stumbled in the last years of his life and not only fell himself but also drowned me - Munshi Premchand."   Munshi Premchand's pen has magic, his pen has done the work of describing in great detail all the social evils of India which are prevalent in the villages and homes of India. In his writings, the atrocities on women, atrocities on the poor and the cruelties present in the society have been immortalized in a very poignant way on the pages of paper, which is visible. So , let's try to know something about such a writer of India.   He was born on 31 July 1880 in Lamahi village of Varanasi district (Uttar Pradesh). He belongs to a Kayastha family by caste. His mother's name was Anandi Devi and father's name was Munshi Ajaib Rai. Premchand's father Ajaib Rai was a postman in Lamahi by profession.   The real name of Munshi Premchand, the emperor of writing, or his name before starting writing, was Dhanpat Rai Srivastava. Premchand

पंचायत के नाम पर शहीद हुए प्रेमचंद यादव पर जुल्म सरकार ने भी शुरू कर दी।।

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पंचायत के नाम पर शहीद हुए प्रेमचंद यादव पर जुल्म सरकार ने भी शुरू कर दी।। उत्तर प्रदेश के देवरिया में यादव समाज के एक व्यक्ती प्रेमचंद यादव रहते थे। वह बङे भले मानस थे। उनकी इंसानियत से उस जगह का समाज उनसे बहुत ख़ुश था। लेकिन, उच्च जात के दुबे के लोग को ये खटक रहे थे। दुबे परिवार के साथ जमिन का विवाद भी था। इस विवाद को लेकर प्रेमचंद यादव बहुत चिंतित रहते। प्रेमचंद यादव इसके लिए अधिकारियों के दरवाजे खटखटाये। लेकिन किसी ने नहीं सुना। क्योंकि दुबे परिवार ऊच्च जात से था। और ऊच्च जात कि प्रदेश में सरकार थी। थक-हार कर प्रेमचंद यादव सब निर्णय दुबे परिवार पर हिं छोङ दिये। एक दिन दुबे ब्राह्मण समाज के सत्यप्रकाश दुबे ने अपने घर पंचयती के लिए प्रेमचंद यादव को फोन करके बुलाया। प्रेमचंद यादव सीधे-साधे थे और वह दुबे के घर पंचयती के लिए गए, जहाँ इन्हे धोखे से हत्या कर दी गई। पंचयती के लिए दुबे परिवार के लोग हीं प्रेमचंद जी को बुलाया था। लेकिन दुबे परिवार के लोग पंचयती के नाम पर हत्या कर दी। प्रेमचंद यादव की पुत्री मीडिया को पुलिस के बङे अधिकारी के समक्ष बताई कि दुबे परिवार के लोग हमारे पापा

एक डिलीवरी मैन के लिए एक शब्द, आम शब्द होता है, जब वह अपने रणभूमि में होते हैं- सर/मैडम।

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एक डिलीवरी मैन के लिए एक शब्द, आम शब्द होता है, जब वह अपने रणभूमि में होते हैं- सर / मैडम । डिलीवरी का काम सरल स्वभाव वाला काम नहीं है, कुछ लोग सामान लेने से अचानक सीधे-सीधे मना कर देते हैं। कहते हैः गलती से हो गया, नहीं लेना है, आदी बहाना लगा कर सामान नहीं लेते। उन्हें ऐसा लगता है, हम समझते नहीं। हम सब समझते हैं। लेकिन, उससे क्या फ़ायद होगा! इसलिए, मौन रहना ही बेहत्तर लगता है और फ़िर वहाँ से चल देते हैं। ऐसी घटनाएं अनेकों बार तथा अक्सर एक डिलीवरी मैन के साथ होते रहते हैं। इसका परिणाम शरीर पर सीधे-सीधे पङता है। शरीर पर बोझ बढ़ जाता है, अनावश्यक बोझ बढ़ता चला जाता है। उस रिजेक्ट सामान को लेकर तब-तक चलते रहने पङते हैं, जब-तक और डिलीवरी न कर दें। इतना हीं नहीं, अन्य जिसे दूसरें ग्राहक को उनके सामान डिलीवर करने होतें है, उनके आईटम के साथ मिक्स मैच होता रहता है कि समस्या बाल की तरह बढ़ते चले जाते हैं। वो दृश्य देखने लायक होता है। वो रिजेक्ट सामान, उन ग्राहक के पास और उस समय निकल जाता है जब किसी दूसरे ग्राहक को उनके सामान देने के लिये निकालते हैँ। ग्राहक बङा प्यार से बोलते हैं- “ ये

।।डिलीवरी मैन।। आपको ये महसूस नहीं होगा कि आप इतने उम्रदराज डिलीवरी मैन से मिल रहें है।

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।। डिलीवरी  मैन।। संयम और सुझ-बूझ के साथ किया गया कार्य सफलता के मार्ग पर ले हीं चला जाता है। एक डिलीवरी मैन में ऐसे गुण होते हैं। जो कोई, डिलीवरी मैन का कार्य करते हैं, उनमें इन गुणों का होना ये सिद्ध करता है कि वह अपने काम के प्रति काफ़ी जागरूक व कर्मशिल हैं। आप जब भी एक अच्छे डिलीवरी मैन से मिलेंगे, तो उनमें ये सब आप देख सकते हैं। एक उम्र से चालिस-पचास के आस-पास के हैं। लेकिन, जब वह अपने कार्य पर निकलते हैं और लोगों से मिलते हैं, तो उनके काम को देखकर और उनसे मिलने के बाद आपको ये महसूस नहीं होगा कि आप इतने उम्रदराज डिलीवरी मैन से मिल रहें है। आपको ये भी एहसास नहीं होगा कि आप एक थके हुए इन्सान से मिले और उनसे समान लिया। उनका नाम लेना या उनके बारे में ज्यादा परिचय देने का मतलब ये हो जाता है कि उनके निजी ज़िंदगी में सेन्धमारी करना। वह शरीर से स्वस्थ दिखते है, लेकिन बीमार न पङने की गारंटी नहीं दिया जा सकता। जब भी उनको, मेरे घर पर कोई समान की डिलीवरी करना होता है, उनको मेरे पास आना होता है तो वह चले आते हैं। वह आते ही कहते हैं कि आपका समान जैसे ही मिलता है, मेरा कोशिश रहता है

कहानी नायक उस्ताद मंगू नए कानून को देखना चाहता था, ठीक उसी तरह, जिस तरह वह अपने घोड़े को देख रहा था।

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कहानी नायक उस्ताद मंगू नए कानून को देखना चाहता था , ठीक उसी तरह , जिस तरह वह अपने घोड़े को देख रहा था। नया कानून सआदत हसन मंटो एक परिचय: मंटो ने कुल 43 वर्ष के जीवन काल में अनेक विवादास्पद , चर्चित और विशिष्ट कहानियाँ लिखीं। उनके लेखन से उर्दू साहित्य में यथार्थवाद का एक नया दौर शुरू हुआ। उनकी चेतना पर भारत-पाक विभाजन का तीखा असर पड़ा। उनकी अनेक ऐसी कहानियाँ ‘स्याह हाशिये’ नामक कहानी संग्रह में मिलती हैं। ‘खोल दो’ , ‘ टोबा टेकसिंह’ , ‘ हतक’ , ‘ लाइसेंस’ , ‘ काली सलवार’ , मंटो की प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। सन् 1947 में विभाजन के समय मंटो पाकिस्तान चले गए। पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कहानी नायक उस्ताद मंगू ‘नया कानून’ की खोज में सुबह के सर्द धुँधलेके में , कई तंग और खुले बाजारों का चक्कर लगाना शुरू कर दिया। उस्ताद मंगू ‘नया कानून’ की खोज में सुबह के सर्द धुँधलेके में, कई तंग और खुले बाजारों का चक्कर लगाना शुरू कर दिया अब आगे.......... कहानी नायक उस्ताद मंगू नए कानून को देखना चाहता था , ठीक उसी तरह , जिस तरह वह अपने घोड़े को देख रहा था। घोड़े के टापों की आवाज ; काली सड़क और उसके आस-पास थोडा-थोड़ा फा

उस्ताद मंगू ‘नया कानून’ की खोज में सुबह के सर्द धुँधलेके में, कई तंग और खुले बाजारों का चक्कर लगाना शुरू कर दिया।

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उस्ताद मंगू ‘नया कानून’ की खोज में सुबह के सर्द धुँधलेके में , कई तंग और खुले बाजारों का चक्कर लगाना शुरू कर दिया। नया कानून सआदत हसन मंटो एक परिचय: मंटो ने कुल 43 वर्ष के जीवन काल में अनेक विवादास्पद , चर्चित और विशिष्ट कहानियाँ लिखीं। उनके लेखन से उर्दू साहित्य में यथार्थवाद का एक नया दौर शुरू हुआ। उनकी चेतना पर भारत-पाक विभाजन का तीखा असर पड़ा।   उनकी अनेक ऐसी कहानियाँ ‘स्याह हाशिये’ नामक कहानी संग्रह में मिलती हैं। ‘खोल दो’ , ‘ टोबा टेकसिंह’ , ‘ हतक’ , ‘ लाइसेंस’ , ‘ काली सलवार’ , मंटो की प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। सन् 1947 में विभाजन के समय मंटो पाकिस्तान चले गए। पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कहानी नायक उस्ताद मंगू के दिल में ‘नए कानून’ का महत्व और भी बढ़ा दिया और वह उसको ऐसी चीज समझने लगा , जो बहुत चमकती हो। “उस्ताद मंगू के दिल में ‘नए कानून’ का महत्व और भी बढ़ा दिया और वह उसको ऐसी चीज समझने लगा, जो बहुत चमकती हो।” अब आगे.......... उस्ताद मंगू ‘नया कानून’ की खोज में सुबह के सर्द धुँधलेके में , कई तंग और खुले बाजारों का चक्कर लगाना शुरू कर दिया। पहली अप्रैल तक उस्ताद मंगू ने

“उस्ताद मंगू के दिल में ‘नए कानून’ का महत्व और भी बढ़ा दिया और वह उसको ऐसी चीज समझने लगा, जो बहुत चमकती हो।”

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“ उस्ताद मंगू के दिल में ‘ नए कानून ’ का महत्व और भी बढ़ा दिया और वह उसको ऐसी चीज समझने लगा , जो बहुत चमकती हो। ” नया कानून सआदत हसन मंटो एक परिचय: मंटो ने कुल 43 वर्ष के जीवन काल में अनेक विवादास्पद , चर्चित और विशिष्ट कहानियाँ लिखीं। उनके लेखन से उर्दू साहित्य में यथार्थवाद का एक नया दौर शुरू हुआ। उनकी चेतना पर भारत-पाक विभाजन का तीखा असर पड़ा।   उनकी अनेक ऐसी कहानियाँ ‘स्याह हाशिये’ नामक कहानी संग्रह में मिलती हैं। ‘खोल दो’ , ‘ टोबा टेकसिंह’ , ‘ हतक’ , ‘ लाइसेंस’ , ‘ काली सलवार’ , मंटो की प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। सन् 1947 में विभाजन के समय मंटो पाकिस्तान चले गए। पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कहानी नायक मंगू कोचावान बैरिस्टरों से भी खफा हो गया , इन्हे भी अपने से कम ही समझा और यदि वश चले तो इसे भी ये बैरिस्टरी सीखा दें। फिलहाल , मंगू ने बैरिस्टरों को   हिकारत भरी नजरों से देख कर , मन-ही-मन कहा-‘टोडी बच्चो।’  उस्ताद मंगू दो बैरिस्टरों को हिकारत भरी नजर से देख कर, मन-ही-मन कहा- ‘टोडी बच्चे!’ अब आगे.......... “ उस्ताद मंगू के दिल में ‘नए कानून’ का महत्व और भी बढ़ा दिया

उस्ताद मंगू दो बैरिस्टरों को हिकारत भरी नजर से देख कर, मन-ही-मन कहा- ‘टोडी बच्चे!’

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उस्ताद मंगू दो बैरिस्टरों को हिकारत भरी नजर से देख कर , मन-ही-मन कहा- ‘टोडी बच्चे!’ नया कानून सआदत हसन मंटो एक परिचयः सआदत हसन मंटो ने कुल 43 साल के जीवन में अनेक विवादास्पद , चर्चित और विशिष्ट कहानियाँ लिखीं। उनके लेखन से उर्दू साहित्य में यथार्थवाद का एक नया दौर शुरू हुआ। उनकी चेतना पर भारत-पाक विभाजन का तीखा असर पड़ा। उनकी अनेक ऐसी कहानियाँ ‘स्याह हाशिये’ नामक कहानी संग्रह में मिलती हैं। ‘खोल दो’ , ‘ टोबा टेकसिंह’ , ‘ हतक’ , ‘ लाइसेंस’ , ‘ काली सलवार’ मंटो की प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। स्न 1947 में विभाजन के समय मंटो पाकिस्तान चले गए। पिछले भाग में अपने पढ़ा , ऐसी खबर सुनाऊँ कि तेरा जी खुश हो जाए! तेरी इस गंजी खोपड़ी पर बाल उग आएँ। उस्ताद मंगू अपने दोस्तों ये कहकर खुश हुआ और फिर से पुराने स्टाइल में आ गया। ऐसी खबर सुनाऊँ कि तेरा जी खुश हो जाए! तेरी इस गंजी खोपड़ी पर बाल उग आएँ’-उस्ताद मंगू। अब आगे......... उस्ताद मंगू दो बैरिस्टरों को हिकारत भरी नजर से देख कर , मन-ही-मन कहा- ‘टोडी बच्चे!’ कुछ अर्से से पेशावर और दूसरे शहरों में , सुर्खपोशों (गफ्फार खाँ के खुदाई खिदमतगारों) का